असल धरोहर
जिन्होने हाथ
थामें चलना सिखाया,
ठोकरों पर
संभलना सिखाया,
अपने इच्छाओं को
रखा पीछे,
संतान की
खुशीयों में ढ़लना सिखाया,
जिन्होनें पड़ने
ना दी सीधी धुप कभी ,
हर मुसीबत में
डटकर चलना सिखाया,
है धैर्य और
परिश्रम का सजिव उदाहरण,
आपदाओं को भी
अवसर में बदलना सिखाया,
जिन्होंने
बुरे-भले का अमुल्य ज्ञान दिया,
सदा निस्वार्थ
प्रेम और सम्मान दिया,
न्यौछावर किया
हमारे भविष्य पर
संपूर्ण जीवन,
अंत तक सुकर्म
के लौ पर जलना सिखाया,
जो है रीढ़
हमारे अस्तित्व की,
समाहित है
जिनमें अनुभव और ज्ञान का अथाह सरोवर ,
संजो कर रखना है
सदैव,आखिर......
हमारे बुजुर्ग
ही तो है हमारी असल धरोहर।
नंदिता माजी
शर्मा
मुंबई
महाराष्ट्र
कोलफील्ड
मिरर
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पीड़ा की खान
नारी पीड़ा की
खान है,
इसपर भी अभिमान
है।
वह खान स्वयम के
लिए है,
न कि किसी और के
लिए।
सारे जग की पीड़ा
अपने अंदर,
समाने की ताक़त
रखती है।
इसलिए तो वह
नारी,
जगजननी कहलाती
है।
नारी बनी पीड़ा
की खान,
किसी और के नहीं
अपने ही लिए।दूसरों की पीड़ा
को अपना लेती है,
अपनी पीड़ा न कभी
दर्शाती है।
सबकी तो वह लेती
है,
अपनी किसी को न
देती है।
जब तक हो सकता
ग्रहण करती है,
जब न हो सके ऐसा
तो दम तोड़ देती है।
गीतिका पटेल
"गीत"
बिलासपुर
(छत्तीसगढ़)
कोलफील्ड मिरर
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