रविवार, 24 जनवरी 2021

किसी व्यक्ति या राजनैतिक बाहुबली के पास सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण का अधिकार नहीं - धार्मिक या राजनैतिक मकसद के अनाधिकृत निर्माण को ध्वस्त करें - हाईकोर्ट

पूरे भारत में सार्वजनिक भूमि पर अनाधिकृत निर्माण व अतिक्रमण हटें तो भारत फिर सोने की चिड़िया - एड किशन भावनानी

कोलफील्ड मिरर 24 जनवरी 2021 (गोंदिया): आज भारत में हम कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर कस्बे, शहर, मेट्रोसिटी, में देखें तो हमें ऐसे अनेक मामले दिखेंगे कि सार्वजनिक भूमि पर तथाकथित कुछ लोग लोगों का अनाधिकृत अतिक्रमण कर निर्माण कार्य है। और हम सब यह जानते हैं कि इस प्रकार के कार्य किसकी शह पर होते हैं और फिर, मामला जनता तक, फिर जनता से अदालतों की दहलीज तक, पहुंच जाता है। पर सवाल आता है कि इस प्रकार के कार्य होते क्यों हैं'? जबकि इस संबंध में नियम व कानून सब बने हैं फिर भी यह सब होता है। अतः इस पर हम सबको चिंतन करना होगा, और स्वयं इस मुद्दे पर विचार कर निर्णय लेना होगा, तो अदालतों की दहलीज पर जाने की जरूरत ही नहीं होगी। संविधान ने हमें ढेर सारे अधिकार दिए हैं, तो हमें डेर सारे कर्तव्य व जवाबदारी भी दी है। सिर्फ हम  तत्परता से निभाए तो भारत को फिर सोने की चिड़िया बनाया जा सकता है।बस जरूरत है, हर भारतीय को एक दृढ़ संकल्प की कि पराया माल नहीं अपना।... 

इस विषय से संबंधित एक मामला मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच में सोमवार दिनांक 18 जनवरी 2021 को माननीय 2 जजों की बेंच, जिसमें माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी तथा माननीय न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेष की एक बेंच के सम्मुख रिट पिटिशन क्रमांक 17257/2020 याचिकाकर्ता बनाम 1) सचिव, होम, प्रोहिबिशन एंड एक्साइज डिपार्टमेंट चेन्नई 2) सचिव, लोकल एडमिनिस्ट्रेशन एंड वाटर डिपार्टमेंट 3) सचिव स्टेट हाईवे माइनर पोर्ट डिपार्टमेंट 4) चेयरमैन नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया नई दिल्ली के संबंध में और जिसका माननीय बेंच ने 3 पृष्ठों के अपने आदेश में कहा कि राजस्व भूमि पर अनधिकृत निर्माण सभी जगहों पर फल-फूल रहा है। बेंच ने सरकार को निर्देश दिया कि वे अनुशासन की भावना सुनिश्चित करे और राजस्व भूमि पर किसी भी प्रकार के अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करें, चाहे वह धार्मिक मूर्ति का निर्माण हो या राजनीतिक मकसद से किया गया निर्माण हो। 

आदेश कॉपी के अनुसार मामला न्यायालय में सरकारी भूमि पर अनधिकृत मूर्तियों के निर्माण से संबंधित था याचिकाकर्ता ने तमिलनाडु में सड़क के किनारे और सार्वजनिक स्थानों पर लगी अनधिकृत मूर्तियों को हटाने के लिए कोर्ट से उत्तरदाताओं को निर्देश देने की मांग की थी।इसके अलावा, यह भी प्रार्थना की गई थी कि पुरुष/ समूह/ जनता को सार्वजनिक स्थानों की अधिकृत प्रस्‍थ‌िति या सड़क के किनारों को पूजा स्‍थल/ मूर्तियों के माल्यार्पण स्‍थल में परिवर्तित करने से रोका जाए।अदालत ने इस पर कहा,संदेश को ऊंचे स्वर में और स्पष्ट रूप से दिया जाना चाहिए कि किसी भी अवैध व्यक्ति या राजनीतिक बाहुबल‌ी के पास उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना और स्थानीय अधिकारियों से कानून के अनुरूप उचित अनुमति प्राप्त किए बिना सार्वजनिक भूमि पर किसी भी प्रकार के निर्माण करके उस पर अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं है। बेंच ने यह निर्देश देते हुए कि मामले पर एक पखवाड़े के भीतर स्थिति रिपोर्ट पेश की जाए, कहा,पूरे राज्य में सार्वजनिक स्थानों पर सभी अवैध और अनधिकृत निर्माणों पर एक व्यापक दृष्टिकोण रखना होगा।संबधित खबर पिछले महीने, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि कई राजनीतिक दल और सांप्रदायिक संगठन, पुलिस बल और प्रशासन में शमिल भ्रष्‍ट अधिकारियों के साथ‌ मिलकर जमीन हथियाने में शामिल हैं

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा था,यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग, वे भी ऐसे कृत्य करते हैं, जमीन पर कब्जा करने वालों के साथ मिलकर संपत्तियों को हथियाने के लिए' पैसे दिए हुए गुंडे की तरह काम करते हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि सार्वजनिक संपत्ति का अतिक्रमण करने वाले देवता के साथ भी कानून के अनुसार निपटा जाना चाहिए, कहा,अतिक्रमण, अतिक्रमण है। अतिक्रमण को कभी भी मंजूर नहीं किया जा सकता है। यहां तक ​​कि एक कानूनी व्यक्ति के रूप में देवता भी अतिक्रमण नहीं कर सकता है।यदि मंदिर का देवता अतिक्रमण का कार्य करता है, तो इससे भी कानून के अनुसार निपटा जाना चाहिए और चूंकि,यह एक देवता है, कानून के नियम को कमजोर नहीं किया जा सकता है। फरवरी 2020 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक भूमि के अतिक्रमण के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया था। 

ज‌स्ट‌िस एन किरुबाकरन और ज‌स्ट‌िस आर पोंगियप्पन की एक खंडपीठ ने कहा था कि सरकारी जमीन पर सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से निजी पार्टियों द्वारा राजनीतिक प्रभाव, धन शक्ति और बाहुबल का प्रयोग करके कब्जा किया जा रहा है। यह रेखांकित करते हुए कि जलीय इकाइयां सभी जानवरों की जीवन रेखा हैं, मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि किसी भी जलप्रपात के किसी भी प्रकार के अतिक्रमण के लिए शून्य सहिष्णुता होनी चाहिए। एक महत्वपूर्ण अवलोकन में, गुरुवार (07 जनवरी) को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा, "उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण की चपेट में हैं, और इस प्रकार के अतिक्रमण को विधायिका द्वारा गिना नहीं जाता है। आदेश कॉपी के पांचवें प्वाइंट में कहा गया है कि मैटर को 2 सप्ताह बाद फिर पेश किया जाए।


संकलनकर्ता 

कर विशेषज्ञ एड 

किशन भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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