शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

घर खरीदारों को लगा झटका- बिल्डरों के संरक्षण के लिए इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया में न्यूनतम सीमा रेखा आवश्यक- सुप्रीम कोर्ट

कोलफील्ड मिरर 23 जनवरी 2021: भारत में कोविड-19 की वजह से उत्पन्न स्थिति को उबारने के लिए अनेक योजनाएं, अध्यादेश, अनुदान, नवंबर तक अनाज की स्कीम, 20 लाख करोड़ की योजना, इत्यादि अनेक योजनाओं के माध्यम से सरकारों द्वारा नागरिकों को आर्थिक रूप से उबारने की कोशिश की गई, उसी में से एक कोशिश यह थी कि इंसॉल्वेंसी एंड बैंक बैंककरप्टसी कोड 2016 की धारा 3 , 4 ,7 और 10 में संशोधन कर जून 2020 में एक अध्यादेश लाया गया था और फिर संसद के दोनों सदनों ने इसे पास कर संशोधित कानून बना दिया गया था और फिर शीर्ष अदालत में इसकी वैधता को चुनौती दी गई थी। 

कंपनियों और व्‍यक्तियों में दिवालियापन के समाधान

इस विधेयक में 2016 के उस कानून में संशोधन की व्‍यवस्‍था है, जिसमें कंपनियों और व्‍यक्तियों में दिवालियापन के समाधान के लिए समयबद्ध प्रक्रिया की व्‍यवस्‍था की गई है। ऋण शोधन अक्षमता एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कोई व्‍यक्ति या कंपनी अपने बकाया कर्ज की राशि नहीं चुका पाता। विधेयक में संहिता के तहत कंपनी के दिवाला होने की प्रक्रिया को अस्‍थायी रूप से निलंबित करने की भी व्‍यवस्‍था है। यह संशोधन इस साल जून में लागू किए गए दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता संशोधन अध्‍यादेश 2020 का स्‍थान लिया।वित्‍तमंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा था कि दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता, कारोबार प्रक्रिया का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है और इससे कंपनियों और व्‍यक्तियों को राष्‍ट्रीय कंपनी कानून न्‍यायाधिकरण में गए बिना मसलों को सुलझाने में मदद मिल रही है। उन्‍होंने कहा था कि ये संशोधन कोविड-19 से उत्‍पन्‍न स्थिति की वजह से लाने पड़े हैं, ताकि कारोबारों को कठिन स्थिति में दिवालापन की कार्रवाई से संरक्षण दिया जा सके। दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता प्रणाली की सराहना करते हुए वित्‍तमंत्री ने बताया था कि इससे अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की बट्टे खाते में पड़ी परिसंपत्तियों की वसूली में मदद मिली है। 

77 हजार करोड़ रूपए से अधिक की राशि वसूल करने में मदद मिली

लोक अदालतों और अन्‍य संस्‍थाओं द्वारा वसूल की गई राशि का तुलनात्‍मक विश्‍लेषण प्रस्‍तुत करते हुए उन्‍होंने बताया था कि 2018-19 में प्रणाली के तहत 42. 5 प्रतिशत राशि वसूल की गई है, जो अब तक सबसे अधिक है। उन्‍होंने कहा था कि इससे 77 हजार करोड़ रूपए से अधिक की राशि वसूल करने में मदद मिली है। रोजगार का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा था कि दिवाला और ऋण शोधन प्रणाली के अंतर्गत दो सौ 58 कंपनियों को डूबने से बचाया जा सकता है।इसे बाद में शीर्ष अदालत में इसकी वैधता को चुनौती दी गई थी जिसका निपटारा माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार दिनांक 19 जनवरी 2021 को माननीय तीन जजों की बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति आर एस नरीमन, माननीय न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा व माननीय न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की बेंच ने रिट पिटिशन (सिविल) क्रमांक 26/2020 याचिकाकर्ता सहित अनेक और याचिकाकर्ता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य,माननीय बेंच ने अपने 465 पृष्ठों व 372 प्वाइंटों में अपने आदेश में बेंच ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के संशोधन को संवैधानिक तौर पर वैध ठहराया है। 

सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई 

कानून के मुताबिक एक परियोजना के संबंध में एक दिवाला याचिका को बनाए रखने के लिए कम से कम अचल संपत्ति के 100 आवंटी या कुल संख्या का दस प्रतिशत जो भी कम हो, होना चाहिए। इस संशोधन को बरकरार रखा गया है।जिससे घर खरीददारों को झटका लगा है। शीर्ष अदालत का फैसला दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2020 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है. इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (संशोधन) अध्यादेश, 2019 (अध्यादेश) की धारा 3 को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया है कि उक्त प्रावधान, जो इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की धारा 7 में कुछ प्रावधान जोड़ता है और रियल एस्टेट आवंटियों के लिए NCLT जाने के लिए नई शर्तों को निर्धारित करता है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है। अध्यादेश के अनुसार एक अचल संपत्ति परियोजना के संबंध में एक दिवाला याचिका को बनाए रखने के लिए कम से कम अचल संपत्ति के 100 आवंटी या कुल संख्या का दस प्रतिशत जो कभी कम हो, होना चाहिए. याचिकाकर्ता घर खरीददार हैं जिसने IBC की धारा 7 के तहत NCLT से संपर्क किया। उनका कहना है कि प्रावधान के अनुसार नई आवश्यकता का पालन करने में विफल रहने पर उसे अपना केस वापस लेना पड़ सकता है।याचिका के अनुसार, "वित्तीय लेनदारों" पर IBC के तहत "लेनदारों" की श्रेणी के तहत पहले से ही एक मान्यता प्राप्त वर्ग है और अध्यादेश वित्तीय लेनदार को आगे विघटित करता है और उस नवनिर्मित वर्ग पर एक शर्त लगाता है. 

धारा 7 के तहत एक विशेष परियोजना 

यह स्थिति उन्हें कोड के तहत दूसरों के लिए उपलब्ध लाभ के लिए फिर से इकट्ठा करने से रोकती है। नए कानून में कहा गया है कि होम बॉयर्स एक डेवलपर को इनसॉल्वेंसी कोर्ट में ले जाना चाहते हैं तो यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी प्रोजेक्ट के कुल आवंटियों में से न्यूनतम 100 या 10% बिल्डर के खिलाफ इनसॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने के लिए संयुक्त याचिका का हिस्सा हों।याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि अधिनियम की धारा 3 और 10, संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन कर रही हैं क्योंकि इसमें खरीददारों को, जो वित्तीय लेनदार हैं को उपायहीन बना दिया है और उनको एक पूर्व शर्त लगाकर भेदभाव के अधीन किया गया है। आईआरपी के लिए इनसॉल्वेंसी बैंक कोड की धारा 7 के तहत एक विशेष परियोजना के आवंटियों की न्यूनतम संख्या के रूप में आवेदन दाखिल करने के लिए आवश्यक बनाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। सीमा लगाने से अंधाधुंध मुकदमें बाज़ी पर रोक लगेगी बेंच ने कहा, लेनदारों की इन श्रेणियों के संबंध में सीमा पर जोर देने से अंधाधुंध मुकदमेबाजी पर रोक लगेगी, जिसके परिणामस्वरूप एक बेकाबू डॉकेट विस्फोट हो सकता है, जहां तक ​​कोड काम करने वाले अधिकारियों का संबंध है। विधायी नीति कॉर्पोरेट देनदार को परिरक्षण के प्रयास को प्रतिबिंबित करती है जो इसे या तो तुच्छ या टालने योग्य अनुप्रयोगों के लिए होगा।                                                                         


किशन भावनानी

महाराष्ट्र

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