शनिवार, 23 जनवरी 2021

जिंदादिली के लिए ख्याबों की उड़ान

कोलफील्ड मिरर 24 जनवरी 2021: मानव जीवन ईश्वर द्वारा प्रदत्त सबसे अधिक कीमती उपहार है। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक कई सुनहरे ख्याब  जीवन में बुनता हैं और उन्हें पूर्ण करने का प्रयास करता है। जीवन की यात्रा इन्हीं पलकों में पले ख्याबों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। कुछ ख्याब मनुष्य स्वयं के लिए, कुछ अपनी संतान और परिवार जनों के लिए एवं कुछ दूसरों के लिए देखता है।जिस प्रकार इंसान को जीवित रहने के लिए हवा , पानी और भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जिंदादिल जीवन के लिए ख्याबों का होना आवश्यक है। आँखो में पले सुनहरे  ख्याब जीवन जीने की प्रेरणा देते है, भविष्य में आगे बढने का हौसला देते है ,जीवन जीने की वजह देते है, आशा का संचार करते है और जीवन में नया उत्साह भर देते है। हमें जीवन में सदा कुछ न कुछ सकारात्मक नए कार्य करते रहने चाहिए। बिना उद्देश्य और लक्ष्य के जीवन बहुत ही नीरस और बोझ बन जाता है। हमारी नयी -नयी इच्छाएँ,ख्वाहिशे ,सपने, आकांक्षाएँ  हमें जीवन में आगे बढने में सहायता करती है। हमेशा कुछ न कुछ सकारात्मक नया करने से हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में नयापन आता है और जीवन ऊर्जा एवं उल्लास से भर जाता है।

   प्राय: देखा जाता है कि एक उम्र के बाद हमारी सारी ख्याहिशे  समाप्त होने लगती है।  हम सिर्फ अपने बच्चों के भावी भविष्य के लिए  ही सपने देखते रहते है और सारी आकांक्षाएँ बच्चो के भविष्य तक ही सीमित रह जाती है।माता- पिता सिर्फ अपने बच्चों के लिए सपने देखते है कि जैसे वह डाॅक्टर बन जाए ,वैज्ञानिक बन जाए ,इंजीनियर बन जाए आदि।अपने जीवन की अपूर्ण इच्छाओं को बच्चों के भविष्य मे देखने लग जाते  है और उनकी स्वयं की इच्छाएँ कहीं न कहीं मन के किसी कोने में दम तोड़कर समाप्त हो जाती है। पर ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें अपनी संतानों के साथ अपने लिए भी सपने अवश्य देखने चाहिए। जब तक जीवन है,तब तक ख्याहिशे का अन्त नहीं होना चाहिए। ख्वाहिशों के बिना जीवन उस ठूँठ के वृक्ष की भांति होता है जो पूर्णतया  सूख चुका है और उसमें नवीन कोंपले कभी भी पल्लवित नहीं होती। इसलिए हमें अपने स्वयं के लिए भी कुछ न कुछ सपने अवश्य देखने चाहिए।  अपने दिनभर के व्यस्त जीवन में से कुछ कीमती समय अपने ख्याबों को पूरा करने के लिए अवश्य निकालना चाहिए।  प्रत्येक किया गया सकारात्मक कार्य जीवन मे रोमांच और जोश भर देता है। जीवन की नीरसता और निष्क्रियता को दूर करता है।जीवन हमारा है, हमारी ख्याहिशे ही जीवन से प्रेम करना सिखाती है।

   वस्तुत: मनुष्य को कुछ सपने समाज कल्याण हेतु भी अवश्य पालने चाहिए और संभवभावी सकारात्मक कार्य समाज सेवा हेतु अवश्य करने  चाहिए। रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा है कि "मैं सोया और स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और  देखा कि  जीवन सेवा है। मैंने सेवा की और पाया कि सेवा आनंद है।" रविंद्रनाथ टैगोर की इन पंक्तियों में कितना गहरा जीवन का शाश्वत सत्य निहित है पर  जीवन में इसे समझने और अपनाने में बहुत समय लग जाता है। हमारे समाज में कितने ही असहाय और गरीब लोग है जिन्हें हमारी आवश्यकता है वे सदा प्रतीक्षा करते है कि कोई नेक इंसान आकर उनका हाथ थामकर मदद करे। हम विभिन्न प्रकार से समाज की सेवा कर जीवन का आनंद ले सकते है जैसे-गरीब और जरूरतमंद लोगो को कपड़े और खाना देकर , अशिक्षित लोगो को शिक्षा का अवसर प्रदान कराना, स्वास्थ्य संबंधी सुविधा प्रदान कराना आदि। जीवन की सार्थकता केवल स्वयं के लिए जीने में ही नहीं  बल्कि दूसरों के आसूँ पोंछने में भी है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अभी  कोराना काल में देखा गया था ।लाॅकडाउन में कितने नेक लोगो ने हरसंभव सहायता उपलब्ध करवाकर  लाखों प्रवासी मजदूरों को उनके  घर पहुँचाया और उन्हें हर संभव सहायता प्रदान की। मजदूरों के लिए भोजन पानी की व्यवस्था करवाईऔर आर्थिक सहयोग दिया ।मानव सेवा का इससे उपयुक्त उदाहरण और क्या हो सकता है। इसलिए दोस्तों समाज के लिए हितकारी कार्य करके जीवन की जिंदादिली का आनंद उठाया जा सकता है। 

वो जीवन भी क्या जीवन है

जिसकी पलकों में कोई ख्याब नहीं

नीरस जीवन से मत मोह रख

बिन परसेवा जीवन का उद्धार नहीं।



अंजू गोयल
 

हैदराबाद

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