शनिवार, 23 जनवरी 2021

एक सवाल *आज क्या मायने रखता है (इंसानियत या शौहरत)

कोलफील्ड मिरर 24 जनवरी 2021: आज जब एक दुकान से मैं सामान खरीद रही थी तो उस दुकान के ही समीप मे बने मंदिर से एक इंसा को निकलते देखा जो की मंदिर मे भगवान का दर्शन कर बाहर आए थे। बहुत ही आलीशान चमकता सूट,बूट पहन रखा था उन्होंने, उनके वस्त्रों से ही ज्ञात हो रहा था कि कोई बहुत बड़े धन्ना सेठ होंगे।तभी मंदिर के समीप ही उनके कोई परिचित मिल गये और वो राह पर ही खड़े होके अपने परिचित से बतियाने लगे।तभी मंदिर के बाहर बैठी एक गरीब औरत जो की वृध्द थी उनके समीप गई और उनसे भीख मे कुछ पैसा या खाने के लिये देने के लिये गुहार करती रही।

परंतु सेठ जी बातों मे ही मग्न हो कर उस गरीब औरत को दुतकारने लगे।ये भी ना सोचा कि चाहे वो औरत भिखारन हो पर उम्र मे वो बहुत बड़ी थी।सच आज देख कर दिल पीढ़ा से भर गया और मन फिर आतुर हो कलम चलाने के लिये विवश कर बैठा।मन मे उठते सवालों के बवंडर को रोकने के लिये ही अपने जज़्बातो, एहसासों को कागज़ों मे उकेरना चाहा।सच यदि आज हम देखें तो हमारे मन के भीतर की मानवता,संवेदनाऐं जैसे शिथिल सी हो गयी हैं।किसी को भी किसी की पीढ़ा से जैसे कोई भी सरोकार ही नहीं रह गया हो।

मतलबी और सिर्फ़ पैसों के पीछे भागती जिंदगी मे हम मावता को ही जैसे भूल गये हैं।हमारे भारतीय संस्कार हमे बुजुर्गों की सेवा,आदर करना और उनकी बातों को सुनने जैसा संस्कार सिखाते हैं।ना की उनको अपमानित कर दुतकारना।  एक समय वो भी था जब त्रैता युग मे श्रीकृष्ण जी का राज्य था,और उनके सखा थे सुदामा जी जो कि बहुत ही गरीब थे।परंतु कृष्ण जी ने बहुत वर्षों बाद भी अपने सखा के आने का संदेश पाया तो वो ये भूल गये की वो एक राजा हैं तुरंत दौड़े चले गये अपने सखा से मिलने और उनके चरणों को भी धोया।सच ये होती है मानवता जहां इंसान ये ना देखता की वो किस पद,प्रतिष्ठा पर आसीन है बल्कि सदैव मानवता दिखा सभी के लिये मार्गदर्शन बना ही रहता है जिसके गुणगान युगों-युगों तक गाये जाते हैं। फिर आज क्यों नहीं मानवता कृष्ण जैसी इंसानों मे झलकती?

क्यों ना इंसान अपने से बड़ों का सम्मान करता?क्यों ना इंसान सबको बराबरी का दर्जा देता?क्या सिर्फ़ शौहरत,पैसा,हीरे-जवाहरात यही सब कुछ है इंसान के लिये मानवता कोई मायने नहीं रखती क्या?सोच कर ही खेद होता है कि इस तरह मानवता,करुणा, दया इंसान के दिल से खत्म होती जा रही है। आज ख्वाब सजाने का हक हर किसी को है,इन ख्वाबों पे अमीरी या गरीबी का तमगा नहीं लगा हुआ है रोज़ आंखों मे ख्वाब सजाऐ एक गरीब सोता है कि कभी ना कभी तो उसकी किमत जाग उठेगी वो भी एक दिन सपनों को पूरा कर वो सब सुविधाओं को उपलब्ध कर लेगा।जिस तरह अमीर ओर भी अमीर होने के ख्वाब सजाता रहता है,हर सुविधाओं का मालिक होने के बावज़ूद वो नित नये सवेरे का इंतज़ार कर पथ पे आगे बढ़ता ही रहता है।परंतु इसका अर्थ ये नहीं की आप ख्वाहिशों को दिल मे ना लाऐ,जरुर ख्वाब सजाऐं और जद्दोजहद भी करें हर एक ख्वाब को पूरा करने की।परंतु मानवता को यूं पैरों तले कुचलते हुए आगे ना बढ़कर हर किसी का सहयोग कर,मानवता का पाठ पढ़ते और पढ़ाते हुए आगे बढ़े।

यदि आप राह से अपनी आलीशान गाड़ी से गुज़र रहें हैं वहीं राह मे कोई असहाय तड़प रहा आपसे या किसी ओर की सहायता की उम्मीद लगा रहा हैऔर आप उसे असहाय छोड़ देख कर भी अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं तो ऐसी आलीशान जिंदगी किस काम की है।निस्वार्थ भावना से सेवा भाव कर उस जरूरत मंद को यदि आप अपने वाहन से अस्पताल तक पहुंचाने की मदद कर दें तो हो सकता है किसी की जिंदगी बच जाऐ। ये चकाचौंध भरी दुनिया बस अब आडंबर मात्र बन कर रह गयी है।क्या सिर्फ़ शौहरत ही दुनिया को चलाती है?यदि आज देखा जाऐ तो हमारे जीवन हमसे गरीब लोगो के सहयोग के बिना बिल्कुल भी ना चलेगा कारण यह है कि हमसे गरीब लोगों मे ही आज मज़दूर, किसान,लघुउद्योग मे काम कर रहे कारीगर,रसोईया, सफाईकर्मी, मिस्त्री आदि ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके बिना जीवन को प्रगतिशील बनाना संभव सा नहीं लगता है। 

ये गरीब लोग ही हमारे लिये बंगलों का निर्माण करते हैं,ये गरीब ही हमारे आस पास का वातावरण साफ करते हैं या हमारे ही घरों मे झाडू पोछा आदि काम कर अपने लिये रोज़ी बटोरते हैं।यदि ये गरीब और मध्यवर्गीय लोग ना होंगे तो आप बताइये की क्या आप उन सभी सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं जिनके आप आदि हैं।आज यदि किसी अमीर का कारखाना है तो उस कारखाने को खुद को नहीं चला सकता है जब तक कारीगर उस कारखाने मे काम नहीं करेंगे तो आमदनी कैसे होगी।किसी भी कारखाने को चलाने के लिये मध्यमवर्गीय या करीब लोग ही काम आते हैं,यहि अपनी जान को मुसीबत मे डाल कर भारी भरकम मशीनों पर काम कर आपके लिये धन कमाने का जुगाड़ करते हैं और इन्हीं के साथ बदसलूकी की जाती है।

यदि आप बच्चे को निरंतर डाट कर अपमानित करते रहेंगें तो वो बच्चा खुद समाज से और आपसे बेरुखी अपना लेगा परंतु यदि आप उसी बच्चे को प्यार से सहला के बात समझाऐंगे तो वह आपके साथ लाड मे वारी-वारी जाऐगा।ठीक उसी तरह आप इंसानियत दिखाते हुए गरीब से सम्मान से पेश आऐंगें तो वो आपकी बातों को कभी ना काटते हुए आपके एक काम के स्थान पर दस काम खुशी-खुशी कर देगा परंतु यदि अपमान मिले तो वो आपके काम को भी ठुकरा देगा।

       शौहरत जरूरी है जिंदगी मे
      
तो मानवता भी बहुत जरूरी है
    
सुनो इंसानों की बस्ती मे रहने वालों
   
इंसानियत ही धर्म यही एक नसीहत है।।

 


वीना आडवानी

नागपुर, महाराष्ट्र

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