सोमवार, 25 जनवरी 2021

किसान आंदोलन कृषि कानून का विरोध या सरकार का राजनैतिक विरोध

कोलफील्ड मिरर 25 जनवरी 2021: कृषक आंदोलन के प्रतिनिधियों और भारत सरकार के मंत्रियों के बीच 11 वे नंबर की बैठक और समझौता वार्ता फिर ना जाने किस हठधर्मिता के कारण विफल हो गई है| सरकार और किसानों के बीच विगत शुक्रवार के आहूत बैठक विफल होकर फिर वही अटक कर रह गई है| किसान नेता 2020 में बनाए गए तीनों नवीन कृषि कानूनों के विरोध में खड़े हुए हैं| उनका कहना है की जब तक सरकार तीनों कृषि कानून को वापस नहीं लेगी एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी नहीं देगी तब तक आंदोलन यूं ही जारी रहेगा एवं 26 जनवरी के पूर्व ट्रैक्टर रैली पूरी ताकत के साथ निकाली जाएगी| जबकि सरकार ने बड़ी ही संवेदनशीलता के अंदाज में यह प्रस्ताव रखा है| यह कानून 12 से 18 महीने तक लागू नहीं किया जाएगा| और इस सहज प्रस्ताव पर किसानों तथा किसान के नेताओं को पुनर्विचार हेतु निवेदन भी किया है| पर शायद किसान या तो किसी राजनीतिक विरोधी पार्टियों की विचारधारा पर चल रही है| अथवा उसका मूल उद्देश आंदोलन करके कृषि कानून का विरोध करना नहीं हो कर केवल राजनैतिक विरोध ही दर्शाता है| अन्यथा वे इस प्रस्ताव पर ठंडे दिमाग से विचार कर आंदोलन वापस भी ले सकते थे| पर इसके पीछे लगे दिमाग और योजनाओं के चलते आंदोलन जस का तस है| और इसके अलावा उन्होंने आंदोलन को तेज करने की घोषणा भी कर दी है|इसका मूल काराण संवैधानिकता का विरोध होकर शासन को अनावश्यक झुकाने का प्रयास मात्र दिखाई दे रहा है| ऐसे में यह उक्ति एकदम सही चरितार्थ होती है कि जब देश के अन्नदाता और सीधे-साधे किसान आंदोलन की आत्मा एवं सादगी को नेस्तनाबूद करने पर अमादा है, तो किसी भी वार्ता की परिणति समझौता परख नहीं हो सकती है| 11वीं दौर की यह वार्ता एक पक्ष की हठधर्मिता के कारण असफल रही है| अब किसानों को भी सरकार के इस कदम से कदम मिलाकर नम्र हो जाना चाहिए| अन्यथा यह विरोध केवल विरोध बनकर रह जाएगा| कितने दिनों के बाद भी आंदोलन की स्थिति यथावत रहने का मात्र संकेत है की कोई भी एक पक्ष समझौता करने की इच्छा नहीं रखता है| और केवल इसे खारिज करने के लिए अड़ियल रवैया अपनाए हुए हैं| और यही कारण है की इस बार की वार्ता के बाद विफल होने से सरकार द्वारा अभी कोई तारीख समझौते के लिए नहीं दी गई है| |लगभग साठ पैसंठ दिनों से ४० संगठनों के अंतर्गत हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन रत है| उनका कहना है की कृषि कानून किसानों के घोर विरोध में है| और कुछ ही हाथों में कृषि की बागडोर सौंपने का सरकार द्वारा षड्यंत्र किया जा रहा है| और यह गिने-चुने हाथ कारपोरेट जगत के लोगों का ही है| ऐसे में हमारा विरोध करना एकदम जायज एवं समय के अनुकूल है| सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्रियों ने बैठक में स्पष्ट कर दिया कि यदि उनके प्रस्ताव पर किसान नेता विचार करते हैं तो बैठक आगे बढ़ाई जाएगी जिससे आप पुनर्विचार करें और हमें अवगत कराएं उन्होंने यह भी कहा संपूर्ण विकल्प आपके सामने रखे गए हैं| किसानों से उन्होंने अपील की है कि आप आंतरिक रूप से विचार विमर्श कर हमें अवगत कराने का कष्ट करें ताकि हम आगे की वार्ता का प्रारूप आपके सामने रख सकें| वार्ता के दिन ही तीन घंटे के लंगर लेने के बाद किसान नेताओं ने आपसी चर्चा करने के उपरांत भारतीय किसान यूनियन गैर राजनीतिक के नेता ने कहा यदि हम सरकार की बात मान लेते हैं तो हमारे किसान साथी भाई कानून को रद्द किए जाने के बगैर यहां से जाने को तैयार नहीं होंगे| ऐसे में हम क्या अपने साथियों को और अन्य किसान भाइयों को परिणाम दिखा पाएंगे| अन्य किसानों की यह आशंका भी है| कि एक बार हम दिल्ली की सीमा से वापस लौट जाएंगे फिर इतनी बड़ी संख्या में किसान आंदोलन में फिर हिस्सा नहीं ले पाएंगे| ऐसे में सभी किसान संगठन में अंत में फैसला किया कि जो पुरानी रणनीति तैयार की गई है उसी पर अमल करते हुए बिना कानून रद्द किए गए आंदोलन वापस नहीं लेंगे| आंदोलन स्थगित करना या वापस लेना या दिल्ली से वापस चले जाने पर किसान अपनी ताकत व एकजुटता खोने से भयभीत नजर आने लगा है|
संजीव ठाकुर स्वतंत्र लेखक व कथाकार रायपुर, छत्तीसगढ़

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