सोमवार, 25 जनवरी 2021

तिरंगे झण्डे के बारे में - रोचक तथ्य

कोलफील्ड मिरर 25 जनवरी 2021: झंडा.किसी भी देश के सम्मान व आजादी का प्रतीक होता है। झण्डे के सम्मान की रक्षा के लिये सैनिक शहीद हो जाते हैं। लोग जान की बाजी लगा देते हैं। आज दुनिया के सभी देशों के झण्डे हैं । झण्डा गीत है - धुनें हैं। आज झण्डे को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह किस देश का ध्वज है। यदि हम इतिहास की माने तो दुनिया में सर्वप्रथम सन् 1219 में डेनमार्क में अपना झण्डा फहराया। स्विटरजरलैण्ड में सन् 1339 ई0 में झण्डा अस्तित्व में आया। भारत के पुराणों व प्राचीन ग्रन्थों में भी झण्डे का उल्लेख मिलता है। भारत तमाम छोटे छोटे राज्यों में बंटा था, जिनके अपने झण्डे व अपनी मुद्राएं (सिक्के) थीं। रामायण व महाभारत कालीन युग में भी झण्डों का उल्लेख मिलता है। सेनाएं झण्डा ऊंचा करके ही युद्ध करती थीं।बहुत पहले लकड़ी के तख्तों पर कुछ आकृतियां बना ली जाती थीं - यही झण्डे कहलाते थे। कपडे के झण्डे की शुरूआत रोम में हुई मानी जाती है। कहते हैं - झण्डे की शुरुआत पहले पहल सेना ने की।सेना को इकट्ठा करने के लिये एक ऊंचे बांस में कपड़े को बांधकर दिया जाता था, जिसे दूर से ही फहरा देखकर सेना एकत्र हो जाती थी। बाइबिल में भी जिक्र है कि यहूदियों का अपना ध्वज था।भारत में देशी राजा-महाराजाओं के अलग-अलग झण्डे थे। मुगलों के भी झंडे थे। बाद में जब अंग्रेज भारत आए तो उनका झण्डा "यूनियन जैक" भारत भर में लहराने लगा । जब भारत की आजादी की लड़ाई प्रारम्भ हुई तो भारतियों के पास कोई निश्चित झण्डा नहीं था। इस पर पहली बार मुम्बई में रहने वाली एक पारसी महिला थी बीकाजी कामा (1861-1936) ने भारत के तिरंगे झण्डे की कल्पना की और 22 अगस्त 1905 को समाजवादी कांग्रेस के जर्मन स्थित स्टटमार्ट में हुए सम्मेलन में फहराया। बाद में गुजरात के समाजवादी कांग्रेस के नेता इन्दुलाल याज्ञनिक कृसे भारत ले आए। यह ध्वज आज भी केशरी के दफ्तर में पूना में रखा है। सर्वप्रथम भारत में तिरंगा झण्डा 7 अगस्त को कोलकाता के ग्रीनपार्क में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने फहराया। इस झण्डे मे हरा, पीला और लाल तीन रंग थे तथा इसमें कमल के सात फूल बने हुए थे जो भारत के सात राज्यों के प्रतीक थे। इसी में बन्देमातरम् लिखा था तथा नीचे दूज का चाँद बना हुआ था। पहली बार राष्ट्रीय गीत बन्देमातरम् को सन् 1856 ई0 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सभा में माया गया था। इसे बंकिमचन्द्र चटटोपाधाय के उपन्यास आनन्दमठ' से लिया गया था। हमारा राष्ट्रगान 'जन गण मण अधिनायक जय हे ; - गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की रचना है किन्तु झण्डा गीत की रचना, 3-4 मार्च 1924 की रात को नरबल (कानपुर) निवासी श्याम लाल गुप्त पार्षद ने अमर शहीद व दैनिक प्रताप के सम्पादक गणेश शंकर विद्यार्थी के कहने पर की थी। 1934ई० को कगिस के हारपुरा अधिवेशन में झण्डा ऊंचा रहे हमारा । विजयी विश्व तिरंगा प्यारा " - को झण्डा गीत घोषित किया गया। हमारे तिरंगे झण्डे झण्डागीत को गाकर हजारों जवान आजादी की लड़ाई में शहीद हो गये। कभी कटे-फटे व गंदे झण्डे को नहीं फहराना चाहिये । किसी राष्ट्रीय महापुरुष वा शोक के अवसर पर डंडे पर झण्डे को झण्डे का स्तम्भ के मध्य में फहराया जाता है. इसे ही झण्डा झुकाना कहते हैं।झण्डे का सदैव सम्मान करना चाहिये। प्रमाणित स्रोतों से ली गई जानकारी अप्रकाशित है।
शिवम् सिंह-कानपुर

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